Saturday 17 March 2018

तारे चुरा ले गया कोई

उनींदी रातों से, झिलमिल तारे चुरा ले गया कोई!

तमस भरी काली रातों में,
कुछ तारे थे दामन मे रातों के,
निशा प्रहर, सहमी सी रात,
छुप बैठी वो, दामन में तारों के,
भुक-भुक जलते वो तारे,
रातों के प्यारे वो सारे,
अलसाए से कुछ थके हारे,
निस्तब्ध रातो की, बाहों में खो गई......

उनींदी रातों से, वो ही तारे चुरा ले गया कोई!

फिर टूटी रातों की तन्द्रा,
अंधियारों में तम की वो घिरा!
तारों की गम में वो रहा,
किससे पूछे वो, तारों का पता?
अब कौन बताए, कहां गए वो तारे?
खुद में खोए निशाचर सारे!
मदमाए से फिरते वो मारे-मारे,
तम की पीड़ा का, न था अन्त कोई....

तम की रातों से, क्युं तारे चुरा ले गया कोई!

टिमटिम जलती वो आशा!
इक उम्मीद, टूट गई थी सहसा!
व्याप्त हुई थी खामोशी,
सहमी सी वो, सिहर गई जरा सी!
दामन आशा का फिर फैलाकर,
लेकर संग कुछ निशाचर,
तम की राहों से गुजरे वो सारे,
उम्मीद की लड़ी, फिर जुड़ सी गई.....

इन रातों से, वो टिमटिम तारे न चुराए कोई!

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