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Sunday 4 October 2020

याद बन चले

इक उम्र के तले.....
तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...

संग थे चले, नादान कितने पल,
हो रहे वही पल, फिर जीवंत आज कल,
वो कुछ याद बन रहे, संवाद कर गए, 
संवाद-हीन कुछ, याद बन चले!

तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...

उस धार में, अथक सी प्रवाह थी,
सपन में पली, इक ज्वलंत सी चाह थी,
जीवंत से चाह, संग प्रवाह बन बहे,
कुछ रहे रुके, याद बन चले!

तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...

तन्हा कहाँ, उम्र का ये रथ चला,
वक्त का काफिला, मुझसे खुलके मिला,
ये इक शिरा, तो संग है आज भी,
शिरे वो दूर के, याद बन चले!

तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...

ठहरने लगी, है उम्र की ये नदी,
क्षणिक ये पल नहीं, बिताई है इक सदी,
रुकी सी रह गई, कोई पल साथ में, 
कुछ पल कहीं, याद बन चले!

तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...

खट्टी-मीठी, यादों के वो पल,
हसरतों भरे, कितनी इरादों के वो पल,
मचल से गए, उभर से गए कभी,
तस्वीर में ढ़ले, याद बन चले!

तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...

कल हम न हों, पर गम न हो,
समय की साज के, ये गीत कम न हो,
ये नज्म प्यार के, कुछ मेरे पास हैं,
गीतों में कई, याद बन चले!

तय हो चले, इक उम्र के ये फासले...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday 27 January 2016

इंतजार एकाकीपन का


कौन किसका इंतजार करता इस जग में,
क्षणिक इंतजार भी डसता इस मन को,
पार इंतजार की उस क्षण के,
इक एकाकीपन रहता जीवन में,
फिर क्युँ किसी का इंतजार करूँ इस जग में।

वक्त इंतजार नही करता किसी का जग में,
वक्त अथक आजीवन चलता ही रहता,
इंतजार उसे पार उस क्षण का,
कब एकाकीपन मिलता उससे जीवन में,
फिर क्युँ वो इंतजार करे किसी का इस जग में।

अथक इंतजार जो भी करता इस जग में,
पागल उस मानव सा ना कोई मैं पाता,
घड़ियाँ गिनता वो उस क्षण का,
जो लौट कर वापस ना आता जीवन में,
फिर क्युँ करता वो इंतजार बेजार इस जग में।