Showing posts with label खंजर. Show all posts
Showing posts with label खंजर. Show all posts

Thursday 6 May 2021

दोस्तों के नाम

लो दोस्त......

गर, रिक्त हो चला हो, 
तूणीर तेरा,
तेरी धमनियों में, ना थम रहा हो, 
रक्त का, उठता थपेरा,
तीर ले लो, तुम ये भी मेरा,
बरसों से, पड़े है ये,
जंग खाए,
अपनों पर, जो मुझसे चल न पाए,
शायद, संभाल ले ये,
उबाल तेरा!

लो दोस्त......

फिर भी, ना थमे गर,
तेरा जिगर,
तीर सारे, हो चले जब बेअसर,
भर लेना, फिर तूणीर,
या, घोंप देना, कोई खंजर,
ना रहे, कोई कसर,
ना मलाल,
रक्त, शायद मेरा, बन उड़े गुलाल,
शायद, निकाल दे ये,
उबाल तेरा!

लो दोस्त......

तुम लो, सारी दुआएँ,
सलाम मेरा,
यूँ चमकता रहे, तेरा हर सवेरा,
पर ना, भूल जाना,
दिल ही तेरा, मेरा ठिकाना,
सदा ही, धड़कूंगा मैं,
ना रुकुंगा,
हृदय मध्य, तुमसे ही आ मिलूंगा,
शायद, संभाल ले ये,
उबाल तेरा!

लो दोस्त......

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday 19 August 2018

फासले

यूं मिलिए कभी, गिरह नफ़रतों के खोलकर....

चंद कदमों के है ये फासले,
कभी नापिए न!
इन दूरियों को चलकर...
मिल ही जाएंगे रास्ते,
कभी झांकिए न!
इन खिड़कियों से निकलकर..

संग जब भी कहीं डोलते हो,
बेवजह बहुत बोलते हो,
दो बोल ही बोल ले,
मन में मिठास घोलकर,
आओ बैठो कभी,
ये जुबाने खंजर कहीं भूलकर...

यूं तो नफ़रतों के इस दौर में,
मिट गई हैं इबारतें,
सूनी सी पड़ी है महफ़िल,
और बच गईं हैं कुछ रिवायतें,
आओ फिर से लिखें,
इक नई इबारत कहीं मिलकर...

कम हो ही जाएंगे ये फासले,
मिट जाएंगी दूरियां,
न होंगी ये राहें अंधेरी,
हर कदम पे सजेंगी महफिल,
फूल यूं ही जाएंगे खिल,
आइये न खुली वादियों में चलकर...

यूं मिलिए कभी, गिरह नफ़रतों के खोलकर....

Tuesday 13 March 2018

इस शहर में

इस शहर में, कम ही लोग बोलते हैं...

चुप ही चुप, खामोशियों को तोलते हैं,
न जाने क्यों, कम ही लोग बोलते हैं...

वो गूंगे हैं जो, बस आँखों से तोलते हैं,
चुप ही चुप, न जाने क्या टटोलते हैं...

गर जरूरत हो, तो वे जुबां खोलते हैं,
आगे पीछे वो, गैरों के भी डोलते हैं...

मतलब से, वो जुबाने जहर घोलते है,
जुबा-एँ-खंजर, वो सीने में घोपते हैं...

जुबान पे मिश्री, वो कम ही घोलते हैं,
कहाँ मन को, वो कभी टटोलते हैं...

बीच शहर के, वो हृदय जो खोलते हैं,
पागल है वो!,  सब यही बोलते है....

फितरत में, तो बस फरेब ही पलते हैं,
इस शहर में, कम ही लोग बोलते हैं...