Showing posts with label पलाश. Show all posts
Showing posts with label पलाश. Show all posts

Sunday 21 May 2023

शाख


उम्मीदों-नाउम्मीदों के, साए तले,
बह चली इक सदी....

पतझड़ों के मध्य, पाले उम्मीदें कई,
चुप थी, कोई शाख,
उन रास्तों पे,
बह रही थी, जिधर इक सदी....

मध्य कहीं, सपनों सी, बहती बयार,
ले आई इक बहार,
वो भी झूमी,
झूम रही थी, जिधर इक सदी....

उड़ चले, कहीं, सपने बनकर राख,
बिखरे वे पात-पात,
कैसी ये वात,
बहा ले चली, जिधर इक सदी....

छूटी कब आशा, अरमान जरा सा,
इक उम्मीद हरा सा,
मन भरा सा,
देखे उधर ही, जिधर इक सदी....

पलट ही आएंगी, गुजरती सदियां,
खिल आएंगे, पलाश,
इक नवहास,
नवआस उधर, जिधर इक सदी....

उम्मीदों-नाउम्मीदों के, साए तले,
बह चली इक सदी....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday 18 March 2022

फाग के रंग

यूँ रंग ले, मेरे संग, फाग के रंग!

खिल न पाएंगे, यूँ ही हर जगह पलाश,
न होगी, हर घड़ी, ये फागुनी बयार,
पर, न फीके होंगे, गीत ये फाग के,
रह-रह, बज उठेंगे, मन के अन्दर,
मिल ही जाएंगे, चलते-चलते, तुझ संग,
वो चटकते, टेसुओं से, लाल रंग!

यूँ रंग ले, मेरे संग, फाग के रंग!

रंग सारे, यूँ, खिल उठेंगे फागुन से परे,
गीत मन के, बज उठेंगे नाद बनके,
ये मौसम, यूँही, सदा बदलते रहेंगे,
पर तुझको ही तकेंगे, ये नैन मेरे,
मौसम से परे, खिल ही जाएंगे तेरे संग,
वो चटकते, टेसुओं से, लाल रंग!

यूँ रंग ले, मेरे संग, फाग के रंग!

झूलेगी कहीं, बौराई, डाली आम की,
कह उठेंगी, हर, कहानी शाम की,
बिखरेंगे पटल पर, यूँ रंग हजारों,
उस फाग में, होंगे हम भी यारों,
उभरेंगे आसमां पर, शर्मो हया के संग,
वो चटकते, टेसुओं से, लाल रंग!

यूँ रंग ले, मेरे संग, फाग के रंग!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday 19 November 2017

खिलते पलाश

काश! खिले होते, हर मौसम ही, ये पलाश...

चाहे, पुकारता किसी नाम से,
रखता नैनों में, इसे हरपल,
परसा, टेसू, किंशुक, केसू, पलाश,
या कहता, प्यार से, दरख्तेपल....

दिन बेरंग ये, रंगते टेसूओं से,
फागुन सी, होती ये पवन,
होली के रंगों से, रंगते उनके गेेसू,
होते अबीर से रंंगे, उनके नयन.....

रमते  इन त्रिपर्नकों में त्रिदेव,
ब्रह्मा, विष्णु और महेश,
नित दिन कर पाता, मैं ब्रम्हपूजन,
हो जाती नित, ये पूजा विशेष.....

दर्शन नित्य ही, होते त्रित्व के,
होता, व्याधियों का अंत,
जलते ये अवगुण, अग्निज्वाला में,
नित दिन होता, मौसम बसंत....

काश! खिले होते, हर मौसम ही, ये पलाश...
------------------------------------------------
पलाश.....

एक वृक्ष, जिसके आकर्षक फूलों की वजह से इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है। जमाने से, होली के रंग इसके फूलो से और अबीर पत्तों से तैयार किये जाते रहे है।

पलाश के तीन पत्ते भारतीय दर्शनशास्त्र के त्रित्व के प्रतीक है। इसके त्रिपर्नकों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास माना जाता है। 

पलाश के पत्तों से बने पत्तल पर नित्य कुछ दिनों तक भोजन करने से शारीरिक व्याधियों का शमन होता है।