Tuesday 29 December 2015

दृश्य विहंगम

दृश्य विहंगम समक्ष आँखों के,
आभा प्रकृति की अति निराली,
उपवन ने छेड़े है राग मधुर से,
मचल उठे प्राण तुझ संग अालि।

अरुणिमा यूँ बिखरी नभ पर,
फूलों के चेहरे हो रहे है प्रखर,
राग प्रकृति संग खग के मुखर,
मुरझाए निशि के कर्कश स्वर।

शिखर हिमकण इठलाते झिलमिल,
पात ओस की बूँदों के मुख गए खिल,
कोयल ने छे़ड़ी रागिणी अति कोमल, 
आलि संग हंदय हो गए हैं आकुल।

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