Wednesday 30 December 2015

फिर तेरी यादों के बादल छाए

फिर तेरी यादों के बादल छाए,
चाहत की रिमझिम बूंदें बरसाए,
अन्तर्मन भीग चुके हैं इनमें,
मयुरों के नृत्य मन को लुभाए।

यादें सारी सजीव हो चुकी हैं,
कोलाहल इनके उभर चुके हैं,
शोर मचाते ये अन्तर्मन मे,
कोयल की हूक मन को हर जाए।

आँखें सजल हो चुकी यादों में,
होठों पर इक चुप सी लगी हैं,
चेहरे पर छा गई अजीब शांति सी,
चातक के स्वर मनविभोर कर जाए।

फिर तेरी यादों के बादल छाए। 

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