Sunday 17 January 2016

शाम के स्वर

शाम के स्वर अब तक थके नही,
इन सुरमई लम्हों के कदम अभी रूके नहीं,
साधना के स्वरों से पुकारती ये तुम्हे।

ये लम्हे हैं सुनहरी चंपई शाम के,
गुजरते क्षितिज पर इस तरह,
जैसे सृष्टि के हर कण से,
मिलना चाहते क्षण भर ये।

तुम भी इनसे मिलने आ जाओ,
प्रीत की रीत वही तुम भी निभा जाओ।

ये संध्या है सुरमई मदहोशियों के,
अनथक छेड़ रहे सुर इस तरह,
जैसे धरा के कण कण मे,
भरना चाहते मीठे स्वर ये।

तुम भी धुन कुछ इनसे ले लो,
प्रीत के गीत वही तुम भी सुना जाओ।

साधना के स्वरों से रातों के तम हर जाओ ।

No comments:

Post a Comment