Saturday 23 January 2016

बादल की वेदना

गर्जनों की भीषण हुंकार,
है प्रदर्शन बादलों की वेदना का,
परस्पर उलझते बादलों की मौन वेदना,
कौन समझ पाया है इस जग में।

घनघोर बादलों की आँसूवृष्टि,
धो डालती धरा का दामन हर साल,
आँसू है शायद ये किसी ग्लानि के!
कड़क बिजली ज्यूँ चीख पीड़ा की।

तपती धरा की जल राशि लेकर,
 स्वनिर्माण स्वयं की करता,
मौन धरा की तपिस देख फिर आँसू बरसाता,
पाषाण हृदय क्या समझेगा जग में।

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