Monday 8 February 2016

जीवन ही जीवन

जीवन ही जीवन होता अंकुरित यहाँ,
हर ओर बिखरा यूँ रूप-सौन्दर्य यहाँ,
कहीं स्वर धारा विविध तरंग भरती,
कही मौन पृथ्वी रस सुधा बरसाती।

सूर्य की प्रदक्षिणा में मगन सब यहाँ,
आकाश में उमड़ते बादल मंडल रवाँ,
दशाें दिशा दौड़ता जीवन प्रवाह यहाँ,
जीवन की तरुनाई से मन भरा कहाँ।

इस ओर उस ओर नयन देखते अब,
अभिवादन करते हैं प्रभात का सब,
प्रीत के आँसू आँखों से बहते हैं तब,
आह्लादित जीवन के सहस्रदल सब।

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