Sunday 14 February 2016

अभिलाषा पल की

प्रिय, युग-युग की चाह पूरी कर लेता इक पल में।

चाह अनन्त पलते इस मन में, 
घड़ियाँ बस पल दो पल जीवन में,
चाह सपनों की हसीन लड़ियों से, 
सजाता जीवन की घड़ियों को संग तेरे।

प्रिय, युग-युग की चाह पूरी कर लेता इस पल में।

आज मोहक इस वेला में,
सुधि फिर लेती मन में इक आशा,
अरमान कई सजते इस तन मन में,
जीवन संध्या प्रहर पलती कैसी अभिलाषा?

प्रिय, युग-युग की चाह पूरी कर लेता इक पल में।

डूब रहा मन अनचाही चाहों में,
सुख सपनों के नगरी की प्रत्याशा,
झंकृत हो रहा अनगिनत तार मन में,
जीवन की इस वेला में ये कैसी अभिलाषा?

प्रिय, युग-युग की चाह पूरी कर लूँ इक पल में।

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