Friday 24 June 2016

छाया अल्प सी वो

बुझते दीप की अल्प सी छाया वो,
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात.....

प्रतीत होता जिस क्षण है बिल्कुल वो पास,
पंचम स्वर में गाता पुलकित ये मन,
नृत्य भंगिमा करते अस्थिर से दोनों ये नयन,
सुख से भर उठता विह्वल सा ये मन,
लेकिन है इक मृगतृष्णा वो रहता कब है पास....

उड़ते बादल की लघु सी प्रच्छाया वो,
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात.....

क्षणिक ही सही जब मिलते हैं उनसे जज्बात,
विपुल कल्पनाओं के तब खुलते द्वार,
पागल से हो जाते तब चितवन के एहसास,
स्मृति में कौंधती है किरणों की बौछार,
लेकिन वो तो है खुश्बु सी बहती सुरभित वात..,,

क्षणिक मेघ की अल्प सी छाया वो,
साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात..

16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार मई 20, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. क्षणिक ही सही जब मिलते हैं उनसे जज्बात,
    विपुल कल्पनाओं के तब खुलते द्वार,
    पागल से हो जाते तब चितवन के एहसास,
    स्मृति में कौंधती है किरणों की बौछार,
    लेकिन वो तो है खुश्बु सी बहती सुरभित वात.. ..वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीय
    सादर

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुंदर रचना ...

    ReplyDelete
  4. वाह!!पुरुषोत्तम जी ,बेहतरीन रचना ।

    ReplyDelete
  5. वाह वाह ! बहुत ही मोहक मधुर भावपूर्ण रचना ! अति सुन्दर !

    ReplyDelete
  6. वाह बहुत खूबसूरत रचना

    ReplyDelete
  7. क्षणिक मेघ की अल्प सी छाया वो,
    साथी! उस छाया से मिलना बस सपने की बात..
    बहुत ही बेहतरीन लाजवाब सृजन...
    वाह!!!
    क्षणिक ही सही जब मिलते हैं उनसे जज्बात,
    विपुल कल्पनाओं के तब खुलते द्वार,
    वाह वाह...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीय सुधा देवरानी जी।

      Delete