Thursday 27 October 2016

संग बैठ मेरे

संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!
आ इस क्षण मैं, तुझको अपनी इन बाहों का पाश दूँ.....

क्षण तेरा तुझसे है नाराज क्यूँ?
मन हो रहा यूँ निराश क्यूँ?
सब कुछ तो है रखा है इस क्षण में,
आ अपने सपनों में झांक तू,
संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!

सुंदर ये क्षण है, इस क्षण ही जीवन है,
कल-कल बहता ये क्षण है,
तेरी दामन में चुपके रहता ये क्षण है,
आ इस क्षण अपनों के पास तू,
संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!

फिर क्यूँ इस क्षण है उदास तू?
सांसें कुछ अटकी तेरी प्राणों में है,
कुछ बिंब अधूरी सी तेरी आँखों में है,
आ हाथों से प्रतिबिम्ब निखार तू,
संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!

स्वर आशा के इस क्षण हैं,
तेरी सांसों में भी सुर के कंपन हैं,
मन वीणा है मन सितार है,
आ आशाओं  के भर आलाप तू,
संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!

आ इस क्षण मैं, तुझको अपनी इन बाहों का पाश दूँ.....

No comments:

Post a Comment