Monday 27 February 2017

लघु-क्षण

हो सके तो! लौटा देना तुम मुझको मेरा वो लघु-क्षण....

क्षण, जिसमें था सतत् प्रणय का कंपन,
निरन्तर मृदु भावों संग मन का अवलम्बन,
अनवरत साँसों संग छूटते साँसों का बंधन,
नैनों के अविरल अश्रृधार का आलिंगन,
हो सके तो! लौटा देना तुम मुझको मेरा वो लघु-क्षण....

क्षण, जिसमें हूक सी उठी थी मृत प्राणों में,
पाया था इक नया जनम, दो रुके से साँसों नें,
फूटे थे किरण आशा के डूबे से इन नैनों में,
शुष्क हृदय प्रांगण में बज उठे थे राग मल्हार,
हो सके तो! लौटा देना तुम मुझको मेरा वो लघु-क्षण....

क्षण, जिसमें हों जीवन की आशा के कण,
जर्जर मन वीणा के तार जहाँ करते हों सुर कंपन,
मृत-प्राण भी पाते हों, नवजीवन का आलिंगन,
कूकते हों कोयल के गीत हृदय के मनप्रांगण,
हो सके तो! लौटा देना तुम मुझको मेरा वो लघु-क्षण....

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