Monday 28 August 2017

मैं और मेरे दरमियाँ

ऐ जिन्दगी, इक तू ही तो है बस, मैं और मेरे दरमियाँ!

खो सा गया हूँ मुझसे मैं, न जाने कहां!
ढूंढता हूँ खुद को मैं, इस भीड़ में न जाने कहां?
इक तू ही है बस और कुछ नहीं मेरा यहाँ!
अब तू ही है बस मैं और मेरे दरमियाँ!

ये रात है और कुछ कह रही खामोशियाँ!
बदले से ये हालात हैं, कुछ बिखर रही तन्हाईयाँ!
संग तेरे ख्यालों के, खोया हुआ हूँ मैं यहाँ!
अब तू ही है बस मैं और मेरे दरमियाँ!

सिमटते हुए ये दायरे, शाम का ये धुआँ!
कह रही ये जिन्दगी, तू ले चल मुझको भी वहाँ!
मुझसे मुझको छीनकर तुम चल दिए कहां!
अब तू ही है बस मैं और मेरे दरमियाँ!

रंगों से है भर चुकी फूलों भरी ये वादियाँ!
कोई गीत गुनगुना रही है पर्वतों की ये घाटियां!
खो सा गया हूँ मुझसे मैं यहीं न जाने कहाँ!
अब तू ही है बस मैं और मेरे दरमियाँ!

ऐ मेरी जिन्दगी, मुझको भी तू ले चल वहाँ!
जी लूँ बस घड़ी दो घड़ी, मैं भी सुकून के जहाँ!
पल दो पल मिल सकूँ मै भी मुझसे जहाँ!
ऐ जिन्दगी, इक तू ही तो है बस, मैं और मेरे दरमियाँ!

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