Thursday 15 February 2018

वक्त के परे

गर हो सके तो मिलो वक्त के परे स्वच्छंद.....

इक राह अनन्त, वक्त के ये द्वन्द,
रोके रुके ना, वक्त के ये छंद,
वक्त के राह की, दिशाएँ दिग्दिगंत,
लिए जा रहा वक्त, मुझको ये किस राह अनन्त....

गर हो सके तो मिलो वक्त के परे स्वच्छंद.....

वक्त की ताल पर, वो झूमता बसंत,
वक्त के काल में डूबता बसंत,
समझ के परे है, वक्त के ये सारे द्वन्द,
बिछी वक्त की बिसात, क्रम से खेलता बसंत....

गर हो सके तो मिलो वक्त के परे स्वच्छंद.....

वक्त के परे, संभावनाएँ हैं अनन्त,
दिशाहीन से वक्त के ये द्वन्द,
छलती रहेंगी हमें, ये दिशाएँ दिग्दिगंत,
आओ चुने हम यहाँ, इन राहों में पड़े मकरंद....

गर हो सके तो मिलो वक्त के परे स्वच्छंद.....

No comments:

Post a Comment