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Sunday 21 April 2019

प्यार

न जाने, कितनी ही बार,
चर्चा का विषय, इक केन्द्र-बिंदु, रहा ये प्यार!
जब भी कहीं, अंकुरित हुई कोमलता,
भीगी, मन की जमीन,
अविरल, आँखों से फूटा इक प्रवाह,
बह चले, दो नैन,
दिन हो या रैन, मन रहे बेचैन,
फिर चर्चाओं में,
केन्द्र-बिंदु बन कर, उभरता है ये प्यार!

हर दिन, क्षितिज के पार,
उभरता है सूरज, जगाकर संभावनाएं अपार!
झांकता है, कलियों की घूँघट के पार,
खोल कर, उनके संपुट,
सहलाकर किरणें, भर देती हैं उष्मा,
विहँसते हैं शतदल,
खिल आते हैं, करोड़ों कमल,
अद्भुत ये श्रृंगार,
क्यूँ न हो, चर्चा के केन्द्र-बिन्दु में प्यार!

कल्पना, होती हैं साकार,
जब सप्तरंगों में, इन्द्रधनुष ले लेता है आकार!
मन चाहे, रख लूँ उसे ज़मीं पर उतार,
बिखर कर, निखरती बूंदें,
किरणों पर, टूट कर नाचती वो बूंदें,
भींगता, वो मौसम,
फिजाओं में, पिघली वो धूप,
शीतल वो रूप,
चर्चाओं के केन्द्र-बिंदु, क्यूँ न बने ये प्यार!

न जाने, कितनी ही बार,
चर्चा का विषय, इक केन्द्र-बिंदु, रहा ये प्यार!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Sunday 18 February 2018

तो हो अच्छा

वाद-परिवाद, चर्चा-परिचर्चा,
निष्कर्ष इन सबका हो कोई, तो हो अच्छा..

होते रहे परिवाद, घटते रहे विवाद,
मिटते रहे मन के सारे विषाद,
कुछ याद रखने लायक हो जो वाद,
स्वाद सबके जीवन में भरे, तो हो अच्छा...

निरर्थक ही हो जब बातों के मंथन,
निरर्थक हो जज्बातों के गूंथन,
फिर टूट जाते है मन के ये अवगुंठन,
जब अर्थ भरे जज्बातों में, तो हो अच्छा....

चर्चा हो मन के असह्य पीड़ा की,
वेदना में तपते से जीवन की,
विरह में जलते मन के आलिंगन की,
सावन में सूखे की हो चर्चा, तो हो अच्छा....

जो क्रियात्मकता का करे सृजन,
ज्ञान की ओर हो अनुशीलन,
आत्मबोध का कर सके विश्व मंचन,
आत्मज्ञान पर हो परिचर्चा, तो हो अच्छा....

कुशाग्रता का न हो कोई अभाव,
अज्ञानता हो जब निष्प्रभाव,
विवेकशीलता का दूरगामी प्रभाव,
संस्कार के जले हो प्रकाश, तो हो अच्छा....

वाद-परिवाद, चर्चा-परिचर्चा,
निष्कर्ष इन सबका हो कोई, तो हो अच्छा..