Showing posts with label तसव्वुर. Show all posts
Showing posts with label तसव्वुर. Show all posts

Sunday 3 February 2019

अनुबंध

अनुबंधों से परे, मन का है ये अनुबंध!

तसव्वुर में, उन्ही की यादों में मन,
होठों पे तवस्सुम, आँखों मे शबनम,
छलकते पैमाने, सूना सा आंगन,
थिरकता इक धुन, चुप-चुप सरगम,
शर्त-रहित, कोरा सा ये अनुबंध!

अनुबंधों से परे, मन का है ये अनुबंध!

तसव्वुर में, इठलाते मंडराते घन,
मुस्काते कण-कण, कंपित धड़कन,
बरसते वो घन, भीगा सा सावन,
रिश्तों की नई परिभाषा, रचता मन,
शर्त-रहित, कोरा सा ये अनुबंध!

अनुबंधों से परे, मन का है ये अनुबंध!

अंजाने शब्द, अंजानी ये भाषा,
हकीकत है, या कल्पना कोरा सा,
मन की दीवारों पर, जरा सा,
है लिखा कहीं, या है अधलिखा सा,
शर्त-रहित, कोरा सा ये अनुबंध!

अनुबंधों से परे, मन का है ये अनुबंध!

चैन जरा सा, बेचैनी सी हर पल,
अनुबंधों से परे, मन कहता यूँ चल,
बंध रहित  अनुबंधों से विकल,
ऐ दिल चल, बह कहीं और निकल,
शर्त-रहित, कोरा सा ये अनुबंध!

अनुबंधों से परे, मन का है ये अनुबंध!

Saturday 9 April 2016

चल संभल ले एे दिल

चल संभल ले एे दिल,यहीं कहीं खो न जाए मन तेरा।

खोया-खोया सा मन, ये किन वादियों में आज,
लग रहा यूँ मिल रहा दिल, आपसे सपनों में आज,
सामने बैठी हो तुम और मैं देखता हुँ चुपचाप।

दूर झिलमिल रौशनी में, बस मुस्कुराते हों आप,
बंद पलकें लिए मैं देखता, हर तरफ बस आप ही आप,
तसब्बुर में खोए हैं आपके, सामने बैठे हों आप।

तिलिस्म है ये कौन सा, गहरा हुआ अब ये राज,
क्या है वो हकीकत? या है वो बस तसब्बुर की बात,
लग रहा खो रहा मन, फिर उन्हीं सपनों में आज।

किन अंधेरों मे भटकता, बावरा ये मन मेरा,
सपनों की उन वादियों में, हर तरफ बस इक अंधेरा,
चल संभल ले एे दिल, कहीं खो न जाए मन तेरा।

Wednesday 17 February 2016

उम्मीद की शाख

नाउम्मीद कहाँ वो, उम्मीद की शाख पर बैठा अब भी वो।

एक उम्मीद लिए बैठा वो मन में,
दीदार-ए- तसव्वुर में न जाने किसके,
हसरतें हजार उस दिल की,
ख्वाहिशें सपने रंगीन सजाने की।

एक प्यासा उम्मीद पल रहा वहाँ,
तड़पते छलकते जज्बात हृदय में लिए,
नश्तर नासूर बने उस दिल की,
हसरतें पतंगों सी प्रीत निभाने की।

एक उम्मीद विवश बेचैन वहाँ,
झंझावात सी अनकही अनुभूतियाँ मन में लिए,
निःस्तब्ध पुकार दिल मे उसकी,
चाह सिसकी की प्रतिध्वनि सुनाने की।

नाउम्मीद कहाँ वो, एक उम्मीद लिए बैठा अब भी वो।

Sunday 7 February 2016

तसव्वुर के सिलसिले

खो रहा आज मन तसव्वुर में आपके,
खुली जुल्फ सी घटा छा रही है सामने।

बूंद बूंद छलक रही अक्स सामने मेरे,
चल रही आँधियाँ दिल की शाख पे मेरे।

खोया रहूँ तसव्वुर में उम्र सारी आपके,
बढ़ती रहें खुमारियाँ हसरतों की सामनें।

धधक धधक जल रहे चराग ये बुझेे हुए,
जिन्दगी मे आप संग यही सिलसिले हुए।