Showing posts with label मुख्तसर. Show all posts
Showing posts with label मुख्तसर. Show all posts

Sunday 14 January 2018

मुख्तसर सी बात

मुख्तसर सी वो ही बातें, सुनी कर गईं रातें.....

जब से गए तुम रहबर,
न ली सुधि मेरी,
न भेजी तूने कोई भी खबर,
हुए तुम क्यूँ बेखबर?

तन्हा सजी ये महफिल,
विरान हुई राहें,
सजल ये नैन हुए,
तुम नैन क्यूँ फेर गए?

मुख्तसर सी वो ही बातें, सुनी कर गईं रातें.....

मुख्तसर से वो पल,
कैसे बीत गए?
बस अब याद मुझे हैं आते,
वो ही शामो-शहर!

तुम संग सजी महफिल,
मखमली राहें,
चमकते से दो नैन,
सिमटते से वो दिन रैन !

मुख्तसर सी वो ही बातें, सुनी कर गईं रातें.....

संग जीने के वो वादे,
मरने की कसमें,
साँसों का साँसों से जुड़कर,
न बिछड़ने की रश्में!

न मिल पाने की तड़प,
तुमसे ही झड़प,
बीतती सी वो घड़ी,
खन खन करती ये चूड़ी!

मुख्तसर सी वो ही बातें, सुनी कर गईं रातें.....

Tuesday 14 November 2017

मुख़्तसर सी कोई बात

मुख़्तसर सी, कोई न कोई तो होगी उसमें बात....

सांझ की किरण, रोज ही छू लेती है मुझे,
देखती है झांक कर, उन परदों की सिलवटों से,
इशारों से यूँ ही, खींच लाती है बाहर मुझे,
सुरमई सी सांझ, ढ़ल जाती है फिर आँखों में मेरी!
सिंदूरी ख्वाब लिए, फिर सो जाती है रात...

मुख़्तसर सी, कोई न कोई तो होगी उसमें बात....

झांकती है सुबह, उन खिड़कियों से मुझे,
रंग वही सिंदूरी, जैसे सांझ मिली हो भोर से,
मींचती आँखों में, सिन्दूरी सा रंग घोल के,
रंगमई सी सुबह, बस जाती है फिर आँखों में मेरी!
दिन ढ़ले फिर, है उसी सपने की बात...

मुख़्तसर सी, कोई न कोई तो होगी उसमें बात....

रंग वही सिंदूरी, लाकर देना तुम मुझे,
मांग सजाऊँगा उसकी, रंग लाकर किरणों से,
किरणपूंज सी, वो आएँगे जब बाहों में,
चंपई वो रंग, बिखरती जाएगी इन राहों में मेरी!
सिंदूरी सांझ तले, कट जाएगी ये रात...

मुख़्तसर सी, कोई न कोई तो होगी उसमें बात....