Showing posts with label साहिल. Show all posts
Showing posts with label साहिल. Show all posts

Sunday 2 August 2020

एक धारा

दो बूँद बनकर, आँखों में उतरे,
मन की, सँकरी गली से, वो जब भी गुजरे!

वो, भिगोते थे, कभी बारिशों में,
लरजते थे, कभी सुर्ख फूलों पे हँस कर,
यूँ, सिमट आते थे, दबे पाँव चलकर,
अब वो मिले, दो बूँद बनकर,
और, नैनों में उतरे!
यूँ मन की गली से, वो गुजरे!

दो बूँद बनकर, आँखों में उतरे.......

यूँ अनवरत, बहती है, एक धारा,
यूँ, लगता है हर-पल, ज्यूँ तुम ने पुकारा,
डूबी सी साहिल, का है इक किनारा,
थोड़ा तुम्हारा, थोड़ा हमारा,
और, हम हैं ठहरे!
यूँ मन की गली से, वो गुजरे!

दो बूँद बनकर, आँखों में उतरे......

यूँ भी, छलक ही जाते हैं, प्याले,
अक्सर, टूटते भी हैं, छलकते-छलकते,
वो, दो बूँद तो, हैं बस तेरी यादों के,
उलझती सी, जज्बातों के,
और, हैं ये पहरे!
यूँ मन की गली से, वो गुजरे!

दो बूँद बनकर, आँखों में उतरे,
मन की, सँकरी गली से, वो जब भी गुजरे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday 31 January 2020

चल कहीं-ऐ दिल

चल कहीं, ऐ दिल, भटक न तू यहाँ!

बहा गई, आँधियाँ,
रहा न शेष, कुछ भी अब यहाँ,
ना वो, इन्तजार है!
अब न कोई, बे-करार है!
रास्ते, वो खो चुके,
तेरे वास्ते, थोड़ा वो रो चुके!
है कौन? 
जिनके वास्ते, तू रुके!
ख्वाब, ना सुना!
न कर, तू ये नादानियाँ!

चल कहीं, ऐ दिल, भटक न तू यहाँ!

न देख, तू ये ख्वाब,
तेरी तरह, है प्यासा ये तालाब,
बचा न वो, आब है!
सूखा सा, अब चेनाब है!
पंक बनी, वो धार,
कहीं दूर, हो चली वो धार!
रिक्त अंक!
अंक-पाश, किसे भरे?
साहिल, ये सूना!
कर न, तू मनमानियाँ!

चल कहीं, ऐ दिल, भटक न तू यहाँ!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
 (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday 25 May 2016

साहिलों पे कहीं

लिखते रहे जिन्दगी की किताब सूखी साहिलों पे कहीं...

डोलती सी इक पतवार की तरह,
दूर खोए कहीं अपनी साहिल से वो थे,
उनकी फितरत तो थी टूटते एतवार की तरह,
वो साहिल के कभी तलबगार ही न थे।

मैं किताबों में बंद कहानी सा खोया साहिलों पे कहीं...

वो भँवर में रहे डूबते मौजों की तरह,
कहीं बेखबर जिन्दगी की कहानी से वो थे,
उनकी चाहत तो रही डूबते इन्तजार की तरह,
वो साहिलों के कहीं मुकाबिल ही न थे।

बिखरा है ये जीवन इन्तजार में उसी साहिलों पे कहीं...

Thursday 7 April 2016

स्पर्श रूह तक

स्पर्श कर गया वो लम्हा, तन्हाईयों में मचलकर!

रूह में उठती रही लहरें,
रूह को कोमल स्पर्श मिला,
तन्हा वो गुजरते रहे, रूह की साहिलों से होकर!

तरन्नुम की बात चली,
शब्दों को इक नया मोड़ मिला
भीगते रहे पाँव उनके, रूह की लहरों में चलकर!

मन में घुलते रहे शब्द वो,
रूह को शब्दों का कंपन मिला,
रूह तक भीगे हैं अब वो, इन लहरों में उलझकर!

रूह भींगती रही हदों तक,
मन कों एहसास-ए-शुकून मिला,
मन चाहता मिल जाएँ वो, तन्हाईयों से निकलकर!

काश! स्पर्श उन लम्हों के, साथ-साथ हों यूँ ही उम्र भर!

Monday 4 April 2016

असंख्य फूल

काश! मन की वादियों में फूल खिलते हजार!

हृदय की धड़कनें कह रहीं हैं बार-बार,
कहीं साहिलों पर खड़ा मन है कोई बेकरार,
गुजर रहें वो फासलों से करते हुए इंतजार।

काश! सुन ले कोई उस हृदय की पुकार,
साहिलों के कोर पे टकरा रही विशाल ज्वार,
बावरा वो मन हुआ धुएँ सा उठ रहा गुबार।

बार-बार वो हृदय कलप कर रहा पुकार,
स्पंदनें धड़कनों की कुहक रही होकर अधीर,
काश! इन वादियों में आ जाती वही बहार।

मन और हृदय दोनों साथ हो चले हैं अब,
अधीर मन पुलक हृदय को संभालता है अब,
उस फलक पे कहीं मिल जाएगा वो ही रब।

मन की वादियों में असंख्य फूल खिल जाएंगे तब!

Monday 28 March 2016

साहिलों से भटकी लहर

इक लहर भटकी हुई जो साहिलों से,
मौज बनकर भटक रही अब इन विरानियों में,
अंजान वो अब तलक अपनी ही मंजिलों से।

सन्नाटे ये रात के कटते नही हैं काटते,
मीलों है तन्हाईयाँ जिए अब वो किसके वास्ते,
साहिलों का निशाँ दूर उस लघु जिन्दगी से।

सिसकियों से पुकारती साहिल को वो दूर से,
डूबती नैनों से निहारती प्रियतम को मजबूर सी,
खो गई आवाज वो अब मौज की रानाईयों में।

इक लहर वो गुम हुई अब समुंदरों में,
मौज असंख्य फिर भी उठ रही इन समुंदरों में,
प्राण साहिल का भटकता उस प्रियतमा में।

पुकारता साहिल उठ रही लहरों को अब,
आकुल हृदय ढूंढता गुम हुई प्रियतमा को अब,
इंतजार में खुली आँखें हैं उसकी अब तलक।

टकरा रही लहर-लहर सागर हुई वीरान सी,
चीरकर विरानियों में गुंजी है इक आवाज सी,
तम तमस घिर रहे साहिल हुई उदास सी।

वो लहर जो लहरती थी कभी झूमकर,
अपनी ही नादानियों में कहीं खो गई वो लहर,
मंजिलों से दूर भटकी प्यासी रही वो लहर।